'निट्टू'

सड़क के एक किनारे सिकुड़ा बैठा रहता 'निट्टू'
अपनी व्यथा का मर्म सहता, अपनी दुर्गन्ध में शुन्य  बैठा रहता 'निट्टू'
ना कुछ पाने की आशा न कुछ खोने का डर
किसी से कुछ न कहता, किसी की न कुछ सुनता
अपने ही अंतर्विरोध में लीन बैठा रहता 'निट्टू'
सब पूछते कौन है  यह ? कोई कहता पागल है कोई कहता है अधपागल
कोई कहता था किसी ज़माने का विद्वान
अब न जाने क्यों बेखबर अपनी ही धुन में  बैठा रहता 'निट्टू'
पूछा उसके घरवालों से तो कहते, करता था साधू का सेवा - संग
हर रोज घंटो मंदिर में ही बैठा रहता था 'निट्टू'
मिली जो न संभाल पाया शक्ति को वो भीषण तरंग
हो गया बेसुध न रही चिंता अपनी पत्नी संतान की, न अपनी धरती- पहचान की
न नहाता है न धोता, खाने को गर कुछ दे तो खा लेता
नहीं तो चुपचाप  किसी अँधियारे कोने में ही बैठा रहता है 'निट्टू'
मिल जाता है बाजार में किसी दूकान के आगे किसी सड़क के कोने में बैठा 'निट्टू'
कोई उसका अब  हाल न पूछे न कोई उसका मन
सबको एक टकटकी लगाए बस देख सिकुड़ा  बैठा रहता 'निट्टू' ....
सुनील शर्मा

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