शिकारी देवी मंदिर – रहस्यों और श्रद्धा का संगम (मंडी, हिमाचल प्रदेश)


हिमालय की गोद में बसा हिमाचल प्रदेश देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों की तपोभूमि है। इन्हीं पवित्र स्थलों में से एक है शिकारी देवी मंदिर, जो मंडी ज़िले की करसोग-जंझेली घाटी की ऊँची पहाड़ी पर, लगभग 2950 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है।
यह मंदिर मां दुर्गा के शक्ति स्वरूप को समर्पित है और इसके पीछे कई रहस्य आज भी जीवित हैं। कहा जाता है कि मार्कण्डेय ऋषि ने यहां तपस्या कर देवी दुर्गा को प्रसन्न किया था। पांडवों ने भी अज्ञातवास के दौरान यहां पूजा-अर्चना की और विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया।
सबसे बड़ा रहस्य यह है कि इस मंदिर पर आज तक कोई छत नहीं टिक पाई। जब-जब छत का निर्माण किया गया, वह रहस्यमय तरीके से ढह गया। इसके अलावा, यहां भारी बर्फबारी होती है, पर मंदिर के ऊपर कभी बर्फ नहीं टिकती — यह बात विज्ञान भी नहीं समझ पाया है।
शिकारी देवी मंदिर से पीर पंजाल, धौलाधार, शिमला और कुल्लू की पर्वत श्रृंखलाओं का अद्भुत दृश्य दिखाई देता है। आसपास का घना जंगल लगभग 72 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जिसमें हिमालयन मोनाल, कस्तूरी मृग, काला भालू जैसे दुर्लभ जीव-जंतु पाए जाते हैं।
पहले यह इलाका शिकार के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए मां दुर्गा यहां “शिकारी माता” के नाम से जानी जाने लगीं। 1962 और 1974 में इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया, जिसके बाद शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया।
यहां तक पहुंचने के लिए दो प्रमुख ट्रैक हैं –
करसोग से वाया बकरोट-शिव देहरा (12 किमी)
जंझेली से शिकारी देवी (16 किमी)
मंदिर तक पहुंचने के बाद श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए सराय, रेस्ट हाउस और भोजन की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
मुख्य दूरी:
मंडी – 80 किमी | शिमला – 180 किमी | कुल्लू – 155 किमी | चंडीगढ़ – 300 किमी
अंत में:
शिकारी देवी न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता, रहस्य और शांति का अद्भुत संगम भी है। यदि आप हिमाचल की आध्यात्मिकता और प्रकृति को करीब से महसूस करना चाहते हैं, तो शिकारी देवी अवश्य जाएं — और इस पवित्र स्थान को स्वच्छ व पवित्र रखने में अपना योगदान दें। 🌸

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