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Showing posts from January, 2024

मंजिल

पाना है मंजिल को गर तो तुमको चलना होगा होंगी बाधाएँ कदम-कदम , रोकेगी रास्ता हर डगर रुकना नहीं है थकना नहीं है , बस कदम बढ़ाते रहना होगा पाना है मंजिल को गर तो तुमको चलना होगा| ज़माना कहेगा भी, हंसेगा और भिन्नभिनायेगा सह हर पीड़ा हर अपमान को , बस सर उठाये चलना होगा पाना है मंजिल को गर तो तुमको चलना होगा | माता-पिता के अरमानो को अपने सोजन्यों के सम्मान  को चलना पड़े पथ के काँटों पर तो चलना होगा पाना है मंजिल को गर तो तुमका चलना होगा | तोड़ के सरे बंधन को छोड़ के सारे आनंद को कुछ कर जाने की ललक कुछ पा जाने की ज्वाला को निरंतर जलाये रखना होगा पाना है मंजिल को गर तो तुमको चलना होगा | दिखेगी मंजिल धुंधली दीवारों में क्षणिक जीत या लम्बी हार में मिल गयी अब तो है मंजिल या है बीच मझधार में इस अंधियारे को भी मिटाना होगा पाना है मंजिल को गर तो तुमको चलना होगा | ... सुनील शर्मा... 

मै सत्ता हूँ

अनंतकाल से शाश्वत सत्य हुँ प्रकृति से उत्पन्न परमेश्वर का एहसास हुँ प्राणियों में प्राण हुँ धरती का भी मै आधार हूँ ऋषिजन की वाणी हुँ या अक्षय ज्ञान हुँ ब्रह्माण्ड में शुन्य का भी मैं  साक्षात्कार हूँ | मै सत्ता हूँ निर्लज हुँ, निशब्द हुँ या निर्गुण, निराधार हुँ समाज में परिभाषित मैं  विभिन्न प्रकार हूँ धर्मराजों की अयोध्या हुँ, मक्कारों की लंका हुँ रत्न जड़ित सिंहासन हूँ, काँटों का भी मैं   ताज हूँ | मैं  सत्ता हूँ किसानो का विश्वास हुँ  बेरोजगारों की भी आस हूँ विकास की राह हूँ या वोट का व्यापार हुँ अँधा हुँ , बेहरा हुँ  या मदमस्त बैठ  मैं भी लाचार हूँ मैंसत्ता हूँ वही किस्सा वही व्यवहार हूँ नाटक पुराना  नया किरदार हुँ , मैं ही भ्रष्ट मैं ही चौकीदार  हूँ मैं सत्ता हूँ...... .. सुनील शर्मा ..