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काँगड़ा किला ( फोटो -शिवा ) |
काँगड़ा का किला , नगरकोट , भीमनगर नाम से प्रसिद्ध यह किला हिमाचल प्रदेश के पुराना काँगड़ा शहर के दक्षिण -पश्चिम में स्थित है तथा बाण गंगा एवं मांझी नदी के संगम पर एक पहाड़ी की चोटी पर निर्मित है| किले की प्राचीर से धौलाधार पर्वतमाला का विहंगम दृश्य दिखाई पड़ता है । मान्यता के अनुसार , इस किले का निर्माण महाभारत काल में त्रिगर्त के तत्कालीन राजा सुशर्मा चंद्र ने करवाया था । महाभारत ग्रन्थ के अनुसार - त्रिगर्त( काँगड़ा रियासत को वैदिक काल में त्रिगर्त कहा जाता था ), के राजा सुशर्मा चंद्र ने महाभारत युद्ध में कौरवों को सहयोग दिया था। यह भी कहा जाता है की कौरवों की पराजय से पहले सुशर्मा चंद्र अपने सैनिकों के साथ युद्ध क्षेत्र से पलायन कर अपनी राजधानी मुल्तान ( पाकिस्तान में ) न लौट कर त्रिगर्त( काँगड़ा ) कि ओर कूच किया तथा त्रिगर्त रियासत को अपने अधिपत्य में ले लिया । राजा सुशर्मा चंद्र ने त्रिगर्त रियासत में अपनी सुरक्षा के लिए एक अभेद्य किले का निर्माण करवाया जिसे अब काँगड़ा किला के नाम से जाना जाता है ।
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किले का प्रवेश द्वार को महाराजा रंजीत सिंह द्वार के नाम से जाना जाता है ( फोटो- सुनील शर्मा ) |
कांगड़ा किला अपने आप में एक प्राचीनतम इतिहास दबाए हुए है ।यह किला कटोच शासकों के अतिरिक्त अनेक शासकों के अधिपत्य में रहा । प्राचीन काल में यह कहा जाता था की जो काँगड़ा के किले को जीतेगा वह पुरे त्रिगर्त रियासत पर राज करेगा। इसके अनुरुप कटोच शासकों के अतिरिक्त इस किले पर अनेक शासकों जैसे तुर्को , मुगलो , सिखों , गोरखाओं तथा अंग्रेजों द्वारा आक्रमण किया गया तथा अपने अधिपत्य में लिया गया ।
नगरकोट ( काँगड़ा किला ) भारत के प्राचीनतम एवं हिमालय के विशालतम किलों में से एक माना जाता है ।
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आहिनि दरवाजा ( फोटो- सुनील शर्मा )
नवाब अलिफ खान को समर्पित आहिनि दरवाजा ( Iron gate)तथा ऊपर जा कर अमीरी दरवाजा |
किले की सुरक्षा प्राचीर 4 किलो मीटर लम्बी है , मेहराबदार मुख्य प्रवेश द्वार महाराजा रंजीत सिंह के नाम पर है ।यह द्वार महाराजा रणजीत सिंह के शासन काल में बनवाया गया । मुख्य द्वार से किले के आतंरिक क्षेत्र पहुंचने तक कई द्वार है हर द्वार एक शासक को समर्पित है तथा उसके शासन काल के बारे में दर्शाता है महाराजा रंजीत सिंह द्वार से नवाब अलिफ खान को समर्पित आहिनि और अमीरी दरवाजे से होता हुआ एक संकरा रास्ता किले के ऊपर जहांगीरी दरवाजे तक जाता है। कहा जाता है की पुराने दरवाजे को तुड़वा कर इस दरवजे को जहाँगीर ने बनवाया था इसलिए इस जहांगीरी दरवाजा कहते है
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अमीरी दरवाजा ( Gate of Nobels) तथा जंहगिरी दरवाजा ( फोटो- सुनील शर्मा ) |
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जंहगीर दरवाजा तथा सामने आता हुआ रास्ता जो दर्शनी दरवाजे तक जाता है ( फोटो- सुनील शर्मा ) |
इसके ऊपर दर्शनी दरवाजा है , जिसके दोनों ओर गंगा एवं यमुना की प्रतिमायें है ।यह किले के आतंरिक भाग का प्रवेश द्वार है ।
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दर्शनी दरवाजा ( Gate of Worship)( फोटो- सुनील शर्मा ) |
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किले का आतंरिक भाग जंहा एक ओर कमरे तथा दूसरी ओर मंदिरों के अवशेष है ( फोटो- सुनील शर्मा ) |
प्रवेश के दाहिने ओर आँगन व् कमरे बने है तथा बांये ओर मंदिरों के अवशेष है दक्षिणी और उतरमूखि लक्ष्मीनारायण , शीतला माता , अम्बिका देवी तथा दो लघु जैन मंदिर है । मुख्य मंदिर के साथ किले का सुरक्षा द्वार है जिसे अँधेरी दरवाजा ( Dark Gate) कहा जाता था। मंदिरों के मध्य सीढ़ियां महल का दरवाजा ( पैलेस गेट ) से होती हुई महल के अवशेषों तक जाती है । किले के पिछले भाग में बारूदखाना , मस्जिद , फांसीघर , सूखा तालाब , कपूर तालाब , बारादरी , शिव मंदिर तथा कई कुँए है ।
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किले के आतंरिक भाग में अम्बिका माता , लक्ष्मीनारायण एवं जैन मंदिर ( फोटो- सुनील शर्मा ) |
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किले के आतंरिक भाग का दृश्य ( फोटो- सुनील शर्मा ) |
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महल का दरवाजा ( Palace Gate) से धौलाधार का नजारा ( फोटो- सुनील शर्मा ) |
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किले से मांझी तथा बाणगंगा नदी का नजारा ( फोटो- सुनील शर्मा ) |
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किले से धौलाधार पर्वतमाला का विहंगम दृश्य ( फोटो- सुनील शर्मा ) |
किले का इतिहास : किले के प्राचीनतम लिखित प्रमाण महमूद ग़ज़नवी के आक्रमण सन 1009 ईस्वी से मिलते है । जिसने एक किलेदार को इस किले में तैनात किया जिसे दिल्ली के तोमर शासकों द्वारा सन 1043 ईस्वी में हटा दिया गया व् कटोच शासकों को पुनः सौंप दिया गया । । सन 1337 में मुहम्मद तुगलक तथा पुनः सन 1351 में फिरोजशाह तुगलक ने इस पर अपना अधिपत्य स्थापित किया था ।
अक़बर के राज्य रोहन ( 1556 ) के समय काँगड़ा किला पुनः प्रकाश में आया जिसने इसे जीत कर धर्मचंद कटोच के अधिपत्य में सौंप दिया । सन 1563 में उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र माणिक्य चंद कटोच गद्दी पर बैठा । 1571 में अकबर के सेनापति खान जहाँ ने किले आक्रमण किया परन्तु यह मुस्लिमो के अधिपत्य में स्थायी रूप से सन 1621 के बाद ही आया । जहांगीर ने 14 महीने की पगबन्दी के किले पर अधिपत्य स्थापित कर मुग़ल गवर्नर सैफ अलिफ खान निगरानी सौंप दिया । सन 1781 में सैफ अलिफ खान की मृत्यु पश्चात बटाला के जय सिंह कन्हैया ने इसे अपने अधीन लिया । 1786 में मैदानी क्षेत्रो के बदले इस किले का अधिकार 21 वर्षीय संसार चंद कटोच को सौंप दिया गया । काँगड़ा पेंटिंग का विकास भी इसी समय में हुआ । सन 1804 -1805 में नेपाल के अमर सिंह थापा के नेतृत्व में गोरखाओं ने चार वर्षो तक काँगड़ा किले की घेराबंदी की , तथा गोरखाओं के विरुद्ध सहायता के आश्वासन पर 1809 में संसार चंद एवं रणजीत सिंह में एक संधि के अनुसार यह महाराजा रणजीत सिंह को समर्पित किया गया तथा 1846 तक यह किला सिखों के अधिकार में रहने के पश्चात अंग्रेजों के अधिकार में आ गया । 4 अप्रैल 1905 के भयंकर भूकम्प के कुछ समय पुर्व ही अंग्रेजों द्वारा इसे खाली कर दिया गया था ।
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( फोटो- सुनील शर्मा ) |
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जयंती माता मंदिर किले के सामने एक पहाड़ी पर है
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4 अप्रैल 1905 के भयंकर भूकंप कारण यह किला तहस - नहस हो गया था , तथा इसे कटोच वंश को पुनः सौंप दिया गया । किले के प्राचीनतम अवशेष नौवीं -दसवीं सदी के हिन्दू एवं जैन मंदिरों के रूप में विध्यमान है । Archaeological Survey of India द्वारा कांगड़ा किले से प्राप्त अवशेषों का अध्य्यन किया जाता रहा है जिससे की इस किले के निर्माण के सही समय तथा कटोच शासन के बाद किले में हुए परिवर्तनो को जाना जा सके । Archaeological Survey of India द्वारा कांगड़ा किले को इसके संरक्षण एवं रख रखाव तथा पर्यटन की दृष्टि से इस किले को National Culture Fund के तहत दर्ज करवाया गया है ।
वर्तमान समय में किले का रख-रखाव Royal family of Kangra, Archaeological Survey of India तथा Govt. of Himachal द्वारा किया जाता है ।
सन 2002 में Royal family of Kangra द्वारा यंहा पर Maharaja Sansaar Chand Museum की स्थापना की गयी । Maharaja Sansar Chand Museum में किले से प्राप्त अवशेष तथा कटोच वंश के शासकों तथा उस समय में प्रयोग होने वाली युद्ध सामग्री , बर्तन , चांदी के सिक्के , काँगड़ा पेंटिंग्स , अभिलेख , हथियार तथा अन्य राजसी वस्तुओं को रखा गया है ।
हिमाचल सरकार द्वारा किले में पर्यटकों की सुविधाओं तथा मनोरंजन के लिए कई तरह की घोषणाएं की गयी जिनमे- किले में पर्यटकों के लिए रेस्तरां का निर्माण , संगीतमय पानी के फव्वारे , तथा किले से जयंती माता मंदिर तक Rope-way का निर्माण परन्तु दुर्भाग्यवश यह योजनाएं अभी तक लंबित है ।
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