शिकारी देवी- हिमालय की गोद में एक रहस्यमयी मंदिर


शिकारी देवी मंदिर -मंडी- हिमाचल प्रदेश 

हिमालय की गोद में बसे  हिमाचल प्रदेश को देवी-देवताओं व् ऋषि-मुनियों की धरती भी कहा  जाता है । कहा जाता है की हिमाचल की धरती पर कई ऋषि-मुनियों , साधु -सन्यासियों ने तपस्या कर देवी-देवताओं को प्रसन किया और  वरदान प्राप्त किये।भारतवर्ष में कई देवी-देवताओं के मंदिर है जिनके पिछे कई अदभुत एवं  रोचक तथ्य विध्यमान है जो आज तक  लोगों के लिए रहस्य बने हुए है । हिमाचल प्रदेश में भी कई ऐसे अद्भुत व् रहस्यमयी मंदिर है जो लोगो के लिए आस्था व् चमत्कार का प्रतीक है । विज्ञानं भी इन तथ्यों  को झुठला नहीं पाया है क्योंकि इस के पीछे कोई ठोस आधार नहीं मिलें है ।
  हिमाचल प्रदेश के   मंडी जिले में स्थित दुर्गा माता का  यह मंदिर जिसे शिकारी देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है  भी आज तक लोगों के लिए रहस्य बना हुआ है । कहा जाता हे की कोई भी मनुष्य आज तक इस मंदिर पर छत  नहीं लगा सका है । 
माता शिकारी देवी 


मान्यता है की मार्कण्डेय ऋषि ने इस स्थान पर कई वर्षों तक दुर्गा माता की  तपस्या की और उन्हें प्रसन किया ।  इस  स्थान पर दुर्गा माता ने मार्कण्डेय ऋषि को शक्ति स्वरुप में दर्शन दिए और वरदान स्वररूप शक्ति  रूप में यंहा स्थापित हुई , इसका उल्लेख मार्कण्डेय पुराण में भी मिलता है । 
यह भी मान्यता है की अज्ञातवास के दौरान पांडव यंहा आये और उन्होंने यंहा पर दुर्गा माता के शक्ति स्वरुप में दर्शन कर उनकी  की तपस्या की और प्रसन कर वरदान स्वरुप युद्ध में धर्म की विजय का आशीर्वाद प्राप्त किया । कहा जाता है की पांडवों ने ही सबसे पहले यंहा पर मंदिर निर्माण कार्य शुरू किया परन्तु यह कोई नहीं जानता  की उनके द्वारा छत का निर्माण क्यों नहीं किया गया । 
इसके कई  वर्षो पछ्चात यंहा पर मंदिर तथा छत का निर्माण कई बार आरम्भ  किया गया परन्तु इसका निर्माण कार्य कभी पूरा नहीं हो सका, जब-जब इस मंदिर की छत का निर्माण कार्य शुरू किया जाता है  मंदिर का  निर्माण पूरा होने से पूर्व ही यह 
ध्वस्त हो जाता है , इसके कारणों के  पीछे आज तक रहस्य बना हुआ है । 
एक रहस्य यह भी है की यह क्षेत्र हिमालय के करीब होने के कारण यंहा पर बर्फ खूब पड़ती है , इस स्थान पर लगभग 6 से 10 फ़ीट तक बर्फ गिरती है परन्तु मंदिर वाले स्थान पर कभी भी बर्फ नहीं टिकती।  

शिकारी देवी मंदिर इस सतह पर कभी भी ज्यादा समय तक बर्फ नहीं टिकती 


शिकारी देवी मंदिर मध्य हिमालय की सुन्दरतम घाटियों में से एक करसोग - जन्जेली घाटी में एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है । यह सुंदर घाटी हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में है  । शिकारी देवी  मंदिर समुद्रतल से लगभग 2950 मी. की ऊंचाई पर स्थित है । यह एक बेहद ही सुन्दर एवं रमणीय स्थल है । चारों ओर देवदार , बान आदि घने वृक्षों से घिरा यह स्थान  प्रकृति के बेहद करीब तथा अत्यंत पवित्र , धार्मिक एवं सुंदर है ।धार्मिक दृष्टि से हिन्दुओं के लिए यह स्थान बहुत महत्वपूर्ण है  धार्मिक महत्व के साथ-साथ यह स्थान प्रकृति प्रेमियों तथा हिमालय में  ट्रेकिंग तथा कैम्पिंग  का शौक रखने वालो के लिए जन्नत के समान है  । हर साल लाखों श्रद्धालु , प्रकृति प्रेमी तथा ट्रैकर माता के दर्शन हेतु एवं  प्राकृतिक सौन्दर्य   व् ट्रेकिंग का लुत्फ़ उठाने यंहा पंहुचते है ।शिकारी देवी की चोटी से पीर पंजाल, धौलाधार  के  पर्वतों का  तथा शिमला एवम कुल्लू की पहाड़ियों का अद्भुत नजारा मिलता है।  शिकारी देवी पंहुचने के लिए एक ट्रैक करसोग से वाया बकरोट -शिवदेहरा  होते हुए हुए शिकारी देवी तथा एक ट्रेक जंझेली से शिकारी देवी के लिए जाता है । कुछ ट्रैकर मंडी से कमरूनाग होते हुए भी शिकारी देवी पहुँचते है । मंदिर न्यास द्वारा यंहा पर यात्रियों के रात्रि विश्राम के लिए सरायों का निर्माण किया गया है , राज्य सरकार द्वारा यंहा पर रेस्ट हाउस भी बनाया गया है । यात्रियों की सुविधाओं के लिए शिकारी देवी मंदिर के पास मन्दिर न्यास तथा आस-पास के गांव के लोगो द्वारा खान-पान व् पूजन सामग्री के पुख्ता इंतज़ाम किये गए है । 
शिकारी देवी का जंगल बहुत घना है जो 72 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है । अत्याधिक घना जंगल होने के कारण इस जंगल में जंगली जीव-जंतु काफी मात्रा में पाए जाते है जैसे - घोरल , काकर , बार्किंग डिअर , जंगली बिल्लिंया , तेंदुए आदि ।   इस जंगल में हिमालय के कुछ दुर्लभ पशु-पक्षी भी पाए जातें है जैसे हिमालयन मोनाल , हिमालयन कस्तूरी मृग , हिमालयन काला  भालू । जंगली जीव-जंतुओं के अतिरिक्त इस जंगल में पेड़-पौधों की कई विशिष्ट प्रजातियां भी  पायी जाती है । 


मंदिर से शिकारी देवी अभ्यारण्य का विहंगम दृश्य 

मंदिर से शिकारी घाटी का सुन्दर नजारा 


शिकारी देवी मंदिर के पास मंदिर न्यास द्वारा बनायीं गयी सराय 

शिकारी देवी में राज्य सरकार द्वारा बनाया गया विश्राम गृह 

 पुराने समय में लोग इस जंगल में शिकार खेले जाया करते थे तथा इसकी पहाड़ी के शिखर से वो शिकार का जायज़ा लेते थे । इस पहाड़ी के शिखर पर माता  दुर्गा की मूर्ति  पहले से स्थापित थी लिहाजा वे माँ दुर्गा के दर्शन कर शिकार में सफल होने की प्रार्थना करते थे और सफल भी होते थे इसलिए  लोग अक्सर इस जंगल में शिकार की तलाश में आया करते थे । जंगली जानवर बहुतायत में होने के कारण यह  जंगल शिकारीयों की पसंदीदा शिकारगाह में तब्दील हो गया और लोगो ने इसे शिकारी का जंगल कहना शुरू कर दिया , धीरे-धीरे यंहा स्थापित दुर्गा माता भी शिकारी माता से जानी जाने लगी और शिकारी माता के नाम से प्रसिद्ध हो गयी ।  
पहले सन 1962 में उसके बाद  सन 1974 में पूर्ण रूप से  शिकारी देवी के इस घने जंगल वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित कर दिया गया । उसके बाद से शिकारी देवी वन्य जीव अभ्यारण्य में शिकार खेलने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया । अब यह जंगल गुज्जरों तथा भेड़ पालकों द्वारा चरागाह के लिए उपयोग में लाया जाता है ।   



शिकारी देवी का बेस- यंही तक करसोग से कार व् जीप द्वारा आया जा सकता है और यंहा से शिकारी देवी मंदिर के लिए लगभग 800 सीढ़िया है 
शिकारी देवी का जंगल  

शिकारी देवी में ट्रैकिंग 


शिकारी देवी अभ्यारण्य का दृश्य 

शिकारी देवी अभ्यारण्य का सुन्दर दृश्य 

चरवाहों द्वारा बनाया  गया  हट्

शिकारी देवी के जंगल में ट्रैकिंग 

मवेशियों द्वारा यह जंगल चारागाह के लिए इस्तेमाल किया जाता है 

शिकारी देवी के लिए जाते हुए जंगल में  सुन्दर हट्स (शंकर देहरा) 

यह  ट्रैक घने जंगल से होकर निकलता है 

शिकारी देवी मंदिर जाने के लिए कई ट्रैक है , एक ट्रैक करसोग से वाया बकरोट -शिव देहरा होते हुए शिकारी देवी तक जाता है जो  लगभग 12 किलो मीटर लंबा है , यह ट्रैक बेहद सुन्दर है जो शिकारी देवी के घने  जंगल से होते हुए शिकारी देवी तक जाता है इस ट्रैक में यंहा के भेड़ पालकों तथा स्थानीय लोगो द्वारा बनाये हुए  हट्स भी है जिसे स्थानीय भाषा में शिव देहरा भी  कहतें  है  जो यात्रियों तथा चरवाहों के द्वारा रात्रि विश्राम गृह के लिए   भी इस्तेमाल किये जाते है ।
 एक और ट्रैक मंडी से वाया जंझेली होते हुए शिकारी देवी मंदिर तक जाता है जो लगभग 16 किलो मीटर लंबा है यह ट्रैक  भी बेहद सुन्दर व् रोमांच से भरपूर है ज्यादातर ट्रैकर्स और यात्री इन दोनों रास्तों से होते हुए शिकारी देवी तक जाते है ।  कुछ ट्रैकर मंडी से कमरूनाग होते हुए भी शिकारी देवी पहुँचते है। 
शिकारी देवी मंदिर पहुँचने के लिए  करसोग से   जीप या कार  द्वारा भी जाया जा सकता है  22 किलो मीटर का  यह सफर  बेहद रोमांचक भरा है ।


करसोग घाटी का दृश्य


बकरोट में हनुमान जी की मूर्ति यंही से ट्रैक की शुरुवात होती है 
 

शिकारी देवी मंदिर के लिए प्रमुख स्टेशनों से दूरी :-
मंडी से शिकारी देवी  - 80 किलो मीटर 
कुल्लू से शिकारी देवी - 155 किलोमीटर 
शिमला से शिकारी देवी - 180 किलोमीटर 
धर्मशाला से शिकारी देवी - 240 किलोमीटर 
चंडीगढ़ से शिकारी देवी -  300 किलोमीटर 


हिमालय में बसे इन स्थानों को  सुन्दर, स्वच्छ  व् पवित्र  रखने में आप का योगदान बहुमूल्य है 

                                                       


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